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Draft:Acharya shri Brijmohan Shastri

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आचार्य वृजमोहन शास्त्री एक शास्त्रनिष्ठ श्रीमद्भागवत कथा वाचक एवं आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं, जो विगत 25 वर्षों से भारतवर्ष में दिव्य कथा प्रवचनों के माध्यम से आध्यात्मिक विवेचन करते हुए प्रजामति विशिष्ट युवा वर्ग को धर्म,भक्ति के तत्वज्ञान से अभिसिंचित कर रहे हैं।

प्रारंभिक जीवन

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Aacharya Shri Brijmohan Shastri Ji
Born06 March 1977 (age 48)
Atar,Sabalgarh,Madhya Pradesh
NationalityIndian
Known forShrimad Bhagwat Katha Narrator
SpouseSmt. Shiva Sharma
Children2 sons (Hari krishna , Ram krishna) 1 daughter (Gargi Sharma)
AwardsBrahma Ratna (by Puri Peethadheeshwar) & Bhagwat Ratna

आचार्य जी, श्री वृंदावनस्थनिम्बार्कमणि परमहंस श्री शुकदेव दास महाभाग के चरणानुगत कृपापात्र, का जन्म फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा 6 मार्च 1977 को मदनमोहन चरणाश्रित प्रवाहित चर्मण्वती त्रिपथगा सरिता के तटस्थ मध्यप्रदेशांतर्गत तहसील सबलगढ अटार गांव में नित्य नैमित्तिक सनाढ्य ब्राह्मण कुल में धीरोधात्रधीरललित, त्रिकालीन संध्योपासी, वेदज्ञ पण्डित रामनिवास मिश्र जी एवं वेदलक्षणा, राधास्वरूपा श्री शांति देवी की करुणामयी अंकशैय्या में हुआ। आपकी बाल्यावस्था सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक चंचलता से ओतप्रोत थी। शायद नटखट कन्हैया की छाया पड़ी थी किंतु बाल्यकाल से ही भगवान श्रीकृष्ण में आपकी अनन्य प्रीति, प्रेम, भगवद्रूचि देखकर, पूज्य पिताजी ने आचार्य श्री वृजमोहन शास्त्री श्रीमद् भागवत के देदीप्यमान नक्षत्र हैं,इस हेतु वेदाध्ययन, संस्कृत अध्ययन के लिए महज सूक्ष्म आयु में ही श्रीधाम वृंदावन भेज दिया, जो कि आपका मातुलगृह भी है।

धर्मो मद्भक्तिकृत् प्रोक्तो ज्ञानं चैकात्मयदर्शनम्....

शिक्षा

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आचार्य श्री, श्रीधाम वृंदावन में, श्रीनिवास संस्कृत महाविद्यालय से प्रारंभिक शिक्षा (शास्त्री) में निष्णात हुए। वहीं आपने वृंदावनस्थ शम्याप्राश सेवाकुंज में अपने मामाजी पुराणाचार्य पण्डित श्री युगल किशोरी शास्त्री जी से समय - समय पर वेद, वेदांग का मार्गदर्शन लिया। आपश्री ने वृंदावन में धर्मसंघ संस्कृत विद्यालय में वेदमूर्ति पण्डित राजवंश द्विवेदी जी के चरणाश्रित होकर वेदों का अध्ययन ग्रहण किया एवं श्रीमद् भागवत का अध्ययन रमणरेती वृंदावन स्थित अलिमाधुरी कुटी भागवत महाविद्यालय में भागवत भास्कर आचार्य शिवकरण शास्त्री जी से अलिमाधुरी में ही निवास कर पांच वर्ष में सअक्षर अध्ययन पूर्ण किया। तदनन्तर निम्बार्क संस्कृत महाविद्यालय से आचार्य श्री ने स्नातकोत्तर आचार्य परीक्षा में उत्तीर्ण किया। गौत्तम ऋषि आश्रम, वराह घाट में अनंत श्री विभूषित वीतराग, परमहंस रसिक शिरोमणि बाबा श्री शुकदेव दास जी से वैष्णवी दीक्षा, द्वादश तिलक, कंठी लेकर शिष्यत्व ग्रहण किया। पूज्य श्री गुरुवर के आश्रम में चौदह वर्ष रहकर श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद, गीतोपनिषद् , सांख्य योग, ब्रह्म सूत्र, भगवदराधना, गौसेवा, साधुसेवा, जीवमात्र को भगवदानुरागी, भागवत कृपा पात्र बनाने की शिक्षा ग्रहण कर, कालक्षेप(प्रवचन) की विलक्षण शैली में उत्स्फूर्त हुए। गुरूचरण-सन्निधौ आचार्य श्री ने शास्त्रीय संगीत की अत्यन्त सूक्ष्म, रहस्यगर्भित एवं तात्त्विक परतों का गंभीरता पूर्वक अनुशीलन एवं मनन किया।

व्यवसायिक जीवन एवं प्रगति

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आचार्य श्री के पास अर्थ तथा गूढ रहस्य समझने के लिए विद्वानों, संतों की कमी नहीं थी किंतु श्री गुरूदेव रुपी ज्ञान गंगा स्वंय घर में बह रही थी। तो आपने कुछ ही वर्षों में निर्मल ज्ञानरुपी गंगाजल से अपने जीवन को भिगो लिया। अब इसे निखारना, तराशना तथा अनुभव की कसौटी पर परीक्षण करना था। यह कार्य आप आज भी कर रहे हैं। महाराजजी का मानना है -

                स्वाध्यायान्मा प्रमद्

आचार्य श्री ने सर्वप्रथम उच्चस्तरीय श्रीमद्भागवत प्रवचन सन् 1995 में मात्र 20 वर्ष की आयु में अपनी ही जन्मभूमि पर किया। जिसमें भारतवर्ष की महान् विभूतियों की गरिमामयी उपस्थिती रही। प्रथम कथा में महाराजजी का अनुभव रहा कि जब वह संस्कृत में श्लोक गाकर उनकी दृष्टि गोचर व्याख्या करते तो उन्हें साक्षात् अपने सामने भगवान श्री राधाकृष्ण की निकुंजलीला दिखाई देती हैं। श्रोताओं का तो यह कथन है कि जब गुरुजी श्लोक बोलते हैं, तो शरीर में एकदम रोमांच उत्पन्न हो जाता है और कथा तो सामने चल रही है ऐसा प्रतीत होता है।

आपका भाव-समुद्र व कथा शैली हृदयस्पर्शी है, जिनमें करुणा का प्रवाह है । शब्दाडम्बर नहीं है । आपकी कथा में श्रोता ही गद्गद् होकर नहीं रोते, बल्कि; वक्ता स्वयं भाव-विभोर होकर अश्रु प्रवाह से आप्लावित हो जाते हैं । कथा-वाचन के समय आपकी दशा देखकर सन्त प्रवर डोंगरे जी महाराज की स्मृति जागृत हो जाती है| भक्त चरित्र, सूरदास, मीराबाई, आदि के पद एवं बृज लोक पंक्तियों के माध्यम से अथवा सरल उदाहरणों के द्वारा कठिन से कठिन शास्त्रों के भाव को बड़ी सरलता से प्रत्येक श्रोता के हृदयपटल तक पहुंँचा देते हैं ।

धार्मिक यात्रा एवं साधनात्मक उपलब्धियां

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आपको भारत में अनेक तीर्थों में अपनी वाणी पवित्र करने का सुयोग प्राप्त हुआ । हरिद्वार, ऋषिकेश, जगन्नाथपुरी, उज्जैन, काशी, बद्रीनाथ, रामेश्वरम्, वृन्दावन आदि अनेक तीर्थस्थलों में आपने अपने करुणाभाव को वाणी के माध्यम से गति दी है । न केवल भारत वसुन्धरा की पावन धरा पर, अपितु; सिंगापुर, आदि देशों में भी आपने सनातन शास्त्रध्वज को फहराया । आपने श्रीमद्भागवत महापुराण, श्रीरामचरितमानस, श्रीशिवमहापुराण, देवी भागवत, श्रीहनुमान कथा, भक्तिमती मीरा चरित्र, नारदभक्तिसूत्र, भक्तमाल आदि विषयों पर चर्चा कर अपनी वाणी को पवित्र करते हुए भक्ति का प्रकाश जन-जन के हृदय तक पहुँचाया । एक बात जो मैंने बाहरी मिलने वाले व्यक्तियों से सुनी है कि आप धार्मिक समाजसेवी संस्थाओालाओं या मानव सेवा में लगी संस्थाओं से स्वयं अपने लिए कोई मूल दक्षिणा नहीं लेते । [ यह एक अद्भुत एवं अनुकरणीय विचार लगा इसलिये मैंने इसका उल्लेख करना यहाँ उचित समझा । आप अपने कथा एवं प्रवचनों के माध्यम से भगवच्चरणारविन्द में सर्वात्म-समर्पण का भाव निरन्तर प्रवाहित करते रहते हैं । आपका जीवन भागवत प्रेम में समर्पित एक अत्यन्त सुन्दर यात्रा है तथा इस यात्रा में अभी तक 350 से ऊपर कथाएं ठाकुर जी को सयर्पित कर चुके है। इस सनातन यात्रा में जगद्गुरु, पीठ, मठ आदि के साथ-साथ राजनीतिक विभूति,सभी को अपनी वाणी से भक्तिमय बना दिया। आचार्य श्री व्रज भाषा में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, निकुंज लीलाओं का रस प्रवाह वर्णन एवं ह्रदयग्राही गोपीगीत के दृष्टिगोचर व्याख्यान द्वारा श्रोताओं का मन मोह लेते हैं।

महान धर्मगुरुओं द्वारा आचार्य श्री को विद्वन मार्तण्‍ड, भागवतमहामहोपाध्‍याय, सरस्वती सिद्ध पुत्र, रसेस आदि उपाधियॉ भी दी गयी हैं। अखिल भारतीय ब्राह्मण संस्था द्वारा ब्राह्मण रत्न प्राप्त, वृंदावन विद्वत् परिषद् द्वारा भागवत रत्न प्राप्त। श्रीमज्जगद्गुरु द्वारिकापीठाधीश्वर द्वारा ब्रह्म रत्न प्राप्त।

आप अभी तक वृज सुषमा, भागवत सुरभि, शुक माधुरी, ऐसा क्यों?,आदि पुस्तकों का विमोचन कर चुके हैं। कथाओं का लाइव प्रसारण तमाम टीवी चैनलों संस्कार, आस्था, यूट्यूब, समाचार पत्रिकाओं में भी वर्णन आता रहता है। आप के भारत वसुंधरा ही नहीं अपितु विदेश में भी हजारों की संख्या में शिष्य हैं, जो विदेश में भी रहकर तिलक कंठी धारण कर नामजप, गीताजी का पाठ करते हैं।

उद्देश्य

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महाराज श्री की शिक्षाओं ने दुनिया भर में हज़ारों लोगों को आध्यात्मिक चेतना के उच्च स्तर का अनुभव करने में मदद की है। आपका उद्देश्य भारत के महान संतों और ऋषियों के प्रेम और ज्ञान को फैलाना और आध्यात्मिक साधकों को हिंदू धर्म की जीवंत परंपराओं के बारे में ज्ञान का खजाना प्रदान करना है। महाराज श्री आध्यात्मिक साधकों के लिए श्रीमद्भागवत कथा की शिक्षाओं को समझने का स्रोत है और अंधकार की दुनिया में ज्ञान का प्रकाश साबित हुआ है।

संपर्क जानकारी

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यदि आप महाराज श्री से संपर्क करना चाहते हैं या श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह और अन्य कार्यक्रमों के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो आप निम्नलिखित पते पर पत्राचार कर सकते हैं या संपर्क कर सकते हैं।

भागवत कृपा कुंज, 4a श्री विहार कॉलोनी, घोसीपुरा ग्वालियर

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References

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